छठ पूजा का परिचय
भारत में छठ पूजा का इतिहास काफी प्राचीन है छठ पूजा एक महत्वपूर्ण और प्राचीन भारतीय त्यौहार है, जिसे मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में मनाया जाता है। यह पूजा सूर्य देव और छठी मां की विशेष आराधना के लिए समर्पित है। छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देव की कृपा प्राप्त करना और चार दिनों के अनुष्ठान के माध्यम से स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति की कामना करना है। यह प्रकृति के प्रति हमारी श्रद्धा और उसकी महिमा का प्रतीक भी है।
छठ पूजा की परंपरा में कई अनूठी रस्में और व्रत शामिल होते हैं। भक्तगण इस अवसर पर उपवास रखते हैं, जिसमें विशेष ध्यान रखा जाता है कि दिन में कुछ भी नहीं खाया जाता है, जबकि सांस्कृतिक और धार्मिक अनुष्ठान संध्या और प्रात: के समय किए जाते हैं। इस पूजा के दौरान भक्त सूर्य को अरग देते हैं, जिसमें कद्दू, गन्ना, नारियल, और दूध जैसे पदार्थों का उपयोग किया जाता है। यह अनुष्ठान सूर्य देव के प्रति आभार और भक्ति को व्यक्त करता है।
छठ पूजा का यह विशेष महत्व है कि यह सामूहिक रूप से मनाई जाती है, जो सामुदायिक भावना को बढ़ावा देती है। पूरे समाज, परिवार और दोस्तों के बीच आपसी सहयोग और समर्थन का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह समाज में एकता और सहयोग की भावना को भी प्रकट करता है। इस प्रकार, छठ पूजा सभी भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो न केवल आध्यात्मिक, बल्कि सामाजिक परिवर्तनों का भी प्रतिनिधित्व करता है।
छठ पूजा का इतिहास
ऐतिहासिक रूप से छठ पूजा पर्व की शुरुआत के पीछे बिहार राज्य के मुंगेर में एक पवित्र शिलाखंड पर स्थित सीता चरण मन्दिर को माना जाता है जहां सीता मां ने यहां छठ पर्व मनाया था दिवाली के बाद इस पर्व को मनाया जाता है जो कि 4 दिनों का होता है।
छठ पूजा का ऐतिहासिक महत्व
छठ पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जिसका इतिहास और सांस्कृतिक महत्व व्यापक और अभिन्न है। यह पूजा मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, और झारखंड राज्यों में मनाई जाती है, जहाँ यह स्थानीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। इस पूजा की उत्पत्ति के बारे में मान्यता है कि यह प्राचीन काल से चली आ रही है, जब लोग सूर्य की उपासना के माध्यम से प्राकृतिक शक्तियों का सम्मान करने लगे थे।
अर्थात, छठ पूजा का संबंध न केवल धार्मिक प्रथाओं से है, बल्कि यह भारतीय समाज में जीवन और प्रकृति के संपूर्ण चक्र के प्रति सम्मान और आभार का प्रतीक है। पूजा का आयोजन सूर्य देवता और उनकी पत्नी उषा देवी की आराधना के लिए किया जाता है, जो जीवन के लिए आवश्यक ऊर्जा और शक्ति प्रदान करते हैं। इसके चलते, यह पूजा जीवन के चक्र, फसल की परिपक्वता और सामुदायिक एकता के प्रतीक के रूप में भी विकसित हुई है।
छठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में इसकी प्राचीनता और सांस्कृतिक परिवेश का भी विशेष महत्व है। इसे विभिन्न पुरानी पौराणिक कथाओं और सामाजिक मान्यताओं से जोड़ा जाता है, जो यह दर्शाता है कि यह पूजा समय के साथ-साथ एक परंपरा के रूप में स्थापित हुई है। यह देखा गया है कि छठ पूजा में शामिल अनुष्ठान और रिवाज धीरे-धीरे विभिन्न अर्थों और महत्वों को ग्रहण करते गए हैं, जिससे यह सिर्फ एक धार्मिक उत्सव न रहकर एक व्यापक सामाजिक समारोह में परिवर्तित हो गया है।
इस प्रकार, छठ पूजा का ऐतिहासिक महत्व उसके संगठनात्मक सन्दर्भ और क्षेत्रीय पहचान से जुड़ा हुआ है, जो इसे अन्य धार्मिक त्यौहारों से भिन्न बनाता है और इसे एक विशिष्ट सांस्कृतिक अस्तित्व के रूप में प्रस्तुत करता है।
छठ पूजा के अनुष्ठान
छठ पूजा एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। यह चार दिवसीय अनुष्ठान सूर्य देव एवं छठी माई की आराधना के लिए समर्पित होता है। इस अनुष्ठान में भक्तजन विशेष नियमों का पालन करते हैं, जो इस उत्सव की महत्ता को बढ़ाते हैं। छठ पूजा की शुरुआत नहाई-खाई से होती है, जिसमें श्रद्धालु घर के निकट जलाशयों में स्नान करके अपने परिवार के कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। यह दिन व्रत की तैयारी के रूप में मनाया जाता है।
दूसरे दिन को ‘खरना’ कहा जाता है, जिसमें व्रति दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को खास पकवान जैसे खीर, रोटी और गुड़ की बनी खीर का भोग बनाते हैं। इस दिन का अनुष्ठान सूर्य के प्रति समर्पित होता है। तीसरे दिन, जिसे ‘संवत्सर’ कहा जाता है, भक्तजन उपवास रखते हैं और संध्या समय सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना होता है। मान्यता है कि, इस दिन सूर्योदय से पहले व्रति सूरज की किरणों को अपने शरीर पर लगाकर उन्हें सांध्य अर्घ्य देते हैं।
छठ पूजा का मुख्य दिन चौथा दिन होता है, जब भक्तजन उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दिन पूजा सामग्री में सूप, थाली, फलों, गीतों और विशेष पकवानों का समावेश होता है। पूजा के दौरान, भक्तजन सूर्य देवता से अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का परिवेश है, बल्कि यह समाज में एकता और आत्मीयता का प्रतिनिधित्व भी करता है। भक्तजन इस पर्व को श्रद्धा और लगन के साथ मनाते हैं, जो उनकी धार्मिक आस्था को दर्शाता है।
छठ पूजा की तिथि:Chhath Puja Date 2024
छठी मैया की पूजा दिपावली के 6 दिन बाद की जाती है। हिन्दू धर्म के पंचाग की मानें तो छठ पूजा 2024 की शुरुआत 7 नवंबर की देर रात 12 बजकर 41 मिनट पर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से ही शुरू हो जएगी, 8 नवंबर की देर रात 12 इसका समापन है। इससे यह एकदम पुष्टि हो गई कि 7 नवंबर से छठ महापर्व की शुरुआत होगी। आप इस दिन संध्याकाल का अर्घ्य देंगे। सुबह का अर्घ्य 8 नवंबर को देना है।
समाज में छठ पूजा का प्रभाव
छठ पूजा भारत के विभिन्न समुदायों में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसका सामाजिक प्रभाव अत्यंत व्यापक है। यह त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक एकता और सामूहिक सहयोग का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है। छठ पूजा के अवसर पर समुदाय के लोग मिलकर विभिन्न अनुष्ठानों का पालन करते हैं, जिसके दौरान वे एक-दूसरे के साथ एकत्रित होते हैं। यह अवसर परिवारों को एक साथ लाने और सामूहिकता की भावना को बढ़ावा देने का एक साधन बनता है। यहाँ, परंपरागत व्यंजन तैयार होते हैं, और सभी लोग मिलकर पूजन विधि का पालन करते हैं, जिससे पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत किया जा सकता है।
आधुनिक समय में, छठ पूजा का स्वरूप और मनाने के तरीके भी बदल रहे हैं। शहरीकरण के चलते, लोग विभिन्न स्थानों पर बसे हुए हैं, और त्योहार को मनाने के लिए शहरों में प्रवासी वर्ग भी एकत्रित होता है। छठ पूजा के दौरान खासकर, बड़े शहरों में यह देखा जाता है कि आए हुए प्रवासी अपने मूल स्थानों की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने के लिए प्रयास करते हैं। इस त्योहार की मेज़बानी और सामूहिक सहभागिता से आमंत्रण का एक विशेष तंत्र विकसित होता है, जिसमें विभिन्न जातियों और समाजों के लोग एक साथ आकर इस पर्व की आस्था को साझा करते हैं।
इस प्रकार, छठ पूजा को सिर्फ एक धार्मिक आयोजन के रूप में नहीं बल्कि सामाजिक समरसता का प्रतीक भी माना जा सकता है। इसकी जड़ें न केवल धार्मिक परंपराओं में हैं, बल्कि यह सामुदायिक एकता और पारिवारिक संबंधों को बुनकर रखती है। बदलावों के बावजूद, यह त्योहार भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए है और इसके सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव का चलन निरंतर जारी है।